कनक दुर्गा मंदिर - विजयवाड़ा - Heritage my India

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Tuesday, July 10, 2018

कनक दुर्गा मंदिर - विजयवाड़ा

कनक दुर्गा मंदिर, देवी दुर्गा का एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है जो भारत के आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित है। ये मंदिर कृष्णा नदी के तट पर मौजूद इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर स्थित है। इंद्रकीलाद्री पर्वत के उल्लेख कालिका पुराण, दुर्गा सप्तशती और अन्य वेदिव पुराणों में किया गया है जिसका तृतीय कल्प में स्वयंभू के रूप में वर्णन किया गया है।
देवी किवदंती :
पौराणिक कथा के मुताबिक, वर्तमान का हरा भरा विजयवाड़ा एक बार चट्टानी क्षेत्र में परिवर्तित हो गया था जिसकी पहाड़िया कृष्णा नदी के प्रवाह को बाधित कर रही थी। जिसके कारण ये क्षेत्र बस्ती और खेती करने के योग्य नहीं रहा। शिव का मंगलाचरण करने के पश्चात उन्होंने पहाड़ियों को आदेश दिया की वे नदी को बहने के लिए मार्ग दे दे। जिसके बाद नदी भगवान शिव द्वारा पहाड़ियों में बनाई सुरंगों और “बज्जाम” द्वारा पूरी शक्ति से बिना रुके बहने लगी। जिसके कारण इस स्थान का नाम बजवाड़ा पड़ा।
इस स्थान से जुडी एक अन्य कथा के मुताबिक अर्जुन ने इन्द्रकील पहाड़ी के शिखर पर भगवान शिव की तपस्या की थी ताकि वो उनसे उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सके। अर्जुन की विजय के पश्चात इस स्थान का नाम “विजयवाड़ा” रख दिया गया। इस स्थान से जुडी अन्य प्रसिद्ध कथा देवी कनकदुर्गा की दानव राजा महिषासुर पर विजय की है। कहा जाता है राक्षसों का बढ़ता अत्याचार असहनीय होता जा रहा जो मूल निवासियों के लिए खतरे का कारण बनता जा रहा था। तब एक साधु ने इन्द्रकील की घोर तपस्या की और जब देवी प्रकट हुई तो साधु ने कहा देवी कृपया आप मेरे मस्तिष्क में निवास करे और दुष्ट राक्षसों पर निगरानी रखे। उसकी इच्छा के मुताबिक देवी ने सभी राक्षसों को मार दिया और देवी दुर्गा ने इस स्थान पर अपने इन्द्रकील स्वरुप का स्थाई निवास बना लिया। बाद में उन्होंने दानव राजा महिषासुर का वध करके विजयवाड़ा के लोगो को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
कनकदुर्गा मंदिर, में देवी की 4 foot (1.2 m) ऊंची प्रतिमा है जिसे आभूषणो और उज्जवल फूलों से सजाया गया है। इस प्रतिमा में देवी के आठ हाथ है जिनमे से प्रत्येक ने शक्तिशाली हथियार ग्रहण किये हुए है। इस प्रतिमा में वे दानव राजा महिषासुर के ऊपर खड़ी है और उसकी शरीर को अपने त्रिशूल से भेद हुआ है। ये देवी सुंदरता का प्रतीक है।
कनकदुर्गा मंदिर के ठीक सामने मल्लेश्वर स्वामी का मंदिर है जो इंद्रकीलाद्री पर स्थित है। पहाड़ी पर उपार जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ने पर, विभिन्न देवी देवताओ की तस्वीरें देखने को मिलती है जिनमे से सबसे प्रमुख कनक दुर्गा, मल्लेश्वर और कृष्णा नदी की है।
विवरण :
कनक दुर्गा मंदिर विजयवाड़ा का पर्याय बन चुका है। इस मंदिर का उल्लेख पवित्र ग्रंथो में भी किया जा चुका है। ये वो स्थान है जहां अर्जुन ने भगवान् शिव की कठोर तपस्या के पश्चात पासुपथा अस्त्र प्राप्त किया था। देवी दुर्गा के इस मंदिर का निर्माण अर्जुन ने करवाया था। ये मंदिर शास्त्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योकि इसके आस पास शिव-लीला और शक्ति-महिमा जैसे कई कार्यक्रम अभिनीत किया जाते है जो इसे अप्रतिम आध्यात्मिक महत्व स्थान बनाते है और प्राचीन काल से कई पर्यटकों को आकर्षित करता है।
वेदो में इस बात का उल्लेख किया गया है की कनकदुर्गा मंदिर को “स्वयंभू” और “आत्म रूप से प्रकट” के रूप में माना जाता है जिसके कारण इन्हे बहुत शक्तिशाली देवी के रूप में माना जाता है। इस मंदिर में विभिन्न साम्राज्यों की शिलालेख पाई जाती है। दशहरा जिसे नवरात्री भी कहा जाता है के दौरान मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मंदिर में की जाने वाले साबसे महत्वपूर्ण पूजा सरस्वती पूजा और थेप्पोत्सवम है। देवी “दुर्गा” के लिए दशहरा उत्सव मंदिर में हर साल मनाया जाता है। तीर्थयात्रियों की बड़ी संख्या इस रंगारंग समारोह में भाग लेने और कृष्णा नदी में पवित्र स्नान करने आती है।

यातायात :

विजयवाड़ा शहर के हृदय में स्थित ये मण्डीर रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन से खुद ड्राइव करके मात्र 10 मिनट की दुरी और एयरपोर्ट से मात्र 20 की दुरी पर स्थित है। बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन से हर 20 मिनट में बसों की सुविधा उपलब्ध है। विजयवाड़ा हैदराबाद से 275 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इस शहर में देश की किसी भी हिस्से से बस मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग द्वारा आसानी से पंहुचा जा सकता है।

देवस्थानम का दशहरा उत्सव :

इस दस दीन के उत्सव के दौरान इस मंदिर के मुख्य देवी श्री कनक दुर्गा देवी, भक्तो को पाने अलग अलग स्वरूपों (अवतार) के दर्शन देकर उनका जीवन कृतार्थ करती है। ये दस देविया बुराई पर अच्छाई के प्रतीक को दर्शाती है, इस उत्सव के प्रत्येक दिन को चंद्र कैलेंडर के अनुसार, प्रत्येक दिन के ज्योतिषीय ग्रहों की चाल के मुताबिक चुना जाता है। इन दिनों को अलंकरम के नाम से भी जाना जाता है। इन देविओं में श्री स्वर्ण कवचलकृता दुर्गा देवी, श्री बाला त्रिपुरा सुंदरी देवी, श्री अन्नपूर्णा देवी, श्री गायत्री देवी, श्री ललिता त्रिपुरा सुंदरी देवी, श्री सरस्वती देवी, श्री महा लक्ष्मी देवी, श्री दुर्गा देवी, श्री महिषासुर मर्धिनि देवी और श्री राजा राजेष्वरी देवी सम्मिलित है। आपको बता दे अलंकार तिथि और नक्षत्रों के मुताबिक प्रतिवर्ष बदलते है।

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