लेपाक्षी के मंदिर - Heritage my India

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Friday, August 3, 2018

लेपाक्षी के मंदिर


आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में एक मंदिर जो धर्म और विज्ञान के लिए पिछले साढ़े चार सौ साल से अबूझ पहेली बना हुआ है। ये है लेपाक्षी मंदिर, इस मंदिर की दक्षिण भारत में बड़ी मान्यता है। पौराणिक कहानियों की वजह से भी और मंदिर में दिखते चमत्कारों की वजह से भी। इस मंदिर को विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। इस मंदिर में सबसे अद्भुत है इसका एक खंभा जो हवा में झूलता रहता है।


लेकिन जिस पर्वत पर ये मंदिर बना है, उस जगह का पहला ज़िक्र मिलता है रामायण में। कहते हैं जब रावण सीता का अपहरण करने के बाद श्रीलंका रवाना हुआ तो पक्षीराज जटायु ने इसी जगह पर रावण का रास्ता रोका था। ऐसा माना जाता है कि ये वही जगह है, जहां रावण और जटायु के बीच भयंकर युद्ध हुआ और इसी जगह पर रावण ने जटायु को घायल कर दिया था। ये सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि इस मंदिर में मौजूद एक निशान को उस कहानी का गवाह बताया जाता है।

पैरों के इस निशान को लेकर कई मान्यताएं हैं। कोई कहता है ये देवी दुर्गा का पैर है, कोई इसे श्रीराम के निशान मानता है। लेकिन इस मंदिर का इतिहास जानने वाले इसे सीता का पैर मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि जटायु के घायल होने के बाद सीता ने जमीन पर आकर खुद अपने पैरों का ये निशान छोड़ा था और जटायु को भरोसा दिलाया था, कि जब तक भगवान राम यहां नहीं आते, यहां मौजूद पानी जटायु को जिंदगी देता रहेगा। ऐसा माना जाता है कि ये वही स्थान है, जहां जटायु ने श्रीराम को रावण का पता बताया था।

ये कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि इसकी अगली कड़ी जुड़ी है। यहां मौजूद एक अद्भुत शिवलिंग रामलिंगेश्वर से, जिसे जटायु के अंतिम संस्कार के बाद भगवान राम ने खुद स्थापित किया था। पास में ही एक और शिवलिंग है हनुमालिंगेश्वर। बताया जाता है कि श्रीराम के बाद महाबलि हनुमान ने भी यहां भगवान शिव की स्थापना की थी। यहां नंदी की 27 फीट लंबी और 15 फीट चौड़ी एक विशालकाय मूर्ति है। चंद कदमों के फासले पर शेषनाग की एक अनोखी प्रतिमा भी है। बताया जाता है कि करीब साढ़े चार सौ साल पहले ये मूर्ति एक स्थानीय शिल्पकार ने बनाई थी। इसे बनाए जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। नंदी और शेषनाग का एक साथ एक जगह पर होना, ये इशारा था कि मंदिर के भीतर महादेव और भगवान विष्णु से जुड़ी कोई और अद्भुत कहानी है।



मंदिर के बीचों बीच एक नृत्य मंडप है। इस मंडप पर कुल 70 पिलर यानी खंभे मौजूद हैं, जिसमें से 69 खंभे वैसे ही हैं, जैसे होने चाहिए। मगर एक खंभा दूसरों से एकदम अलग है, वो इसलिए क्योंकि ये खंभा हवा में है। यानी इमारत की छत से जुड़ा है, लेकिन जमीन के कुछ सेंटीमीटर पहले ही खत्म हो गया। बदलते वक्त के साथ ये अजूबा एक मान्यता बन चुका है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इंसान खंबे के इस पार से उस पार तक कोई कपड़ा ले जाए, तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।

कुछ लोगों ने सोचा कि शायद मंदिर की इमारत का वजन बाकी के 69 खंभों पर होगा, इसलिए एक खंभे के हवा में झूलने से कोई फर्क न पड़ता हो, लेकिन कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौर में कुछ यही थ्योरी एक ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने भी दी थी। कहा जाता है कि 1902 में उस ब्रिटिश इंजीनियर ने मंदिर के रहस्य को सुलझाने की तमाम कोशिशें कीं। इमारत का आधार किस खंभे पर है ये जांचने के लिए उस इंजीनियर ने हवा में झूलते खंभे पर हथौड़े से वार किए।

इस मंदिर के रहस्य के सामने ब्रिटिश इंजीनियर के वैज्ञानिक तर्क भी बेमानी साबित हुई, क्योंकि इस खंभे पर हुए वार से करीब 25 फीट दूर मौजूद कुछ खंभों पर दरारें आ गईं। यानी ये साफ हो गया कि इमारत का सारा वजन यानी इमारत का आधार इसी खंभे पर टिका है, जिसे छेड़ने से पूरी इमारत धराशाई हो सकती है। लिहाजा वो इंजीनियर भी इन्हीं सवालों के साथ लौट गया, कि आखिर हवा में झूलते खंभों के सहारे कोई इमारत कैसे खड़ी रह सकती है।

इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रौद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। 15वीं शताब्दी तक ये शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान था, लेकिन विजयनगर रियासत में इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया, वो भी एक अद्भुत चमत्कार के बाद। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि पहले यहां स्वामी पैदा हुआ था। 1538 में यहां भगवान की प्रतिष्ठा के ग्रुप अन्ना के दो पुत्र थे। एक पुत्र बोल नहीं पाता था। यहां पूजा करने के बाद उसके बेटे को बोलना आ गया और उसके बाद मंदिर बनाया। यहां वीरभद्र स्वामी की स्थापना की। उन्होंने इस मंदिर का पूरा निर्माण करवाया।

शिल्पकला के इस हैरतअंगेज नमूने का सबसे रहस्यमय हिस्सा था नृत्य मंडप। हालांकि कुछ लोग इस मंडप को शिव और पार्वती के विवाह से भी जोड़ते हैं, क्योंकि पौराणिक कथाओं के मुताबिक महादेव और पार्वती का विवाह इसी जगह पर हुआ था। यही वजह है कि विजयनगर के राजाओं ने इस मंदिर में एक विवाह मंडप तैयार किया और इसे कुछ ऐसा रूप दिया जैसे अप्सराओं समेत तमाम देवी-देवता यहां नृत्य कर रहे हों। यहां अंकेश्वर है जिनके 3 पैर है। छत पर 12 टुकड़े हैं जिसमें सौ पत्ते हैं और बीच में एक कमल है। यह नाट्य मंदिर का पूरा ग्रेविटी इसी कमल में है ऐसा कहा जाता है। 15वीं शताब्दी में ही शिल्पकला की कुछ ऐसी नुमाइश हुई कि सदियों बाद भी विज्ञान को उस कला का जवाब नहीं मिला। महादेव की भक्ति में आज भी मंडप का वो खंबा नटराज रूप में अपना पैर उठाए नृत्य कर रहा है।

विजयनगर की सत्ता बदली, तो इस शिल्पकारी के कद्रदार भी बदल गए। नए राजाओं ने मंदिर का निर्माण करने वाले वीरुपन्ना की आंख निकालने का फरमान जारी किया। अपनी कला पर गर्व के साथ वीरुपन्ना ने राजा का हुक्म माना और खुद ही अपनी आंखें कुर्बान कर दीं। कहा जाता है कि मंदिर की चट्टानों पर वीरुपन्ना की आंखों और खून के निशान आज भी मौजूद हैं। 1914 में कुछ अंग्रेज अधिकारियों को इन कहानियों पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने इन धब्बों की जांच करवाई औऱ  फिर उन्हें भी यकीन हुआ कि सदियों बाद बाद भी जो निशान कायम हैं। वो इंसानी खून के ही हैं।

इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी है। कहते हैं कि वैष्णव यानी विष्णु के भक्त और शैव यानी शिव के भक्त के बीच सदियों तक सर्वश्रेष्ठ होने की तनातनी जारी रही। इस तकरार को रोकने के लिए अगस्त मुनि ने इसी जगह पर तपस्या की और अपने करिश्मे से इस बहस को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। अगस्त मुनी ने इसी जगह पर साबित किया कि विष्णु और शिव एक दूसरे के पूरक हैं। यहां पास ही में विष्णु का एक अद्भुत रूप है रघुनाथेश्वर। यानी जहां विष्णु, भगवान शंकर की पीठ पर आसन सजाए हुए हैं। यहां विष्णु जी को शंकर जी के ऊपर प्रतिष्ठा किया है, रघुनाथ स्वामी के रूप में। जो कहानियां, कई सबूतों के साथ आज भी इन पहाड़ों पर जिंदा हैं, उनके चर्चे उत्तर भारत में कम ही सुनाई देते हैं।

लेपाक्षी मंदिर सदियों से ज्ञान और विज्ञान की गवाही दे रहा है, जो कहता है कि वह कारीगर चित्रकार भी रहे होंगे जिन्होंने विजयनगरम कला को मंदिर की दरो दीवार पर उतार डाला। वो कलाकार मूर्तिकार भी रहे होंगे, जिनके छेनी और हथौड़े ने मूर्तियों को जीवंत बना डाला। वह कारीगर कलाकार भी रहे होंगे जिन्होंने नृत्य करते मंदिर की कल्पना को हकीकत बना डाला। लेपाक्षी मंदिर की कला, कलाकार की कल्पना कमाल है और यही कमाल विज्ञान को अपनी तरफ आकर्षित करता है। लटकते हुए खंबे की कला को, ज्ञान को, विज्ञान को समझने की हर कोशिश अब तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैँ।

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